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Saturday, July 23, 2016

कम्प्युटर के कि बोर्ड को कुट कुट कर 
किरदारो कि जुबान मे डायलॉग ठुस्ने वाला लेखक ..
इंसानो कि भीड मे किरदार 
खोजने वाला लेखक ..
इक दिन किरदारो कि भीड मे 
अपने दोस्तो को खोज लेता हैं...
कल पता नही दोस्तो को क्या हो गया था...
.अच्छा बोल रहे थे सब के सब.
ये वही दोस्त हैं
पहली कविता सुनाई थी गम कि किसी रात..
तो चुटकुला समझ कर हसने लगे थे...
..ये वही दोस्त हैं जो कहते हैं
स्कूल मे ढंग से लिखता
तो आज पेट के लिये लिखने कि नौबत नही आती..
दोस्तो
इक दुसरे को पल भर मे जमीन पर लाना कोई हमसे सिखे...
अच्छा है हमारा कोई दोस्त पायलट नही बना.
मगर पता नही कल क्या हो गया था..
अच्छा बोल रहे थे सब के सब..
ब्राईट फ्युचर कि बधाई दे रहे थे
लेकीन मै बिटवीन द लाईन पढ पाता हू.
असल मे उनका कहना था
अब तो कुछ अच्छा लिख.
कोशिश जारी है यारों.

-- अरविंद जगताप.

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