वैसे हर इन्सानके अंदर एक बंदर होता है. मौका देखकर उछलकुद करता हैं. फिर इन्सान बन जाता हैं. मगर हम बंदर आजकल इंसानोमें और हममें जादा फर्क महसूस नहीं करते. तो आपको पता चलगया होगा मैं बंदर हूं. इन्सानोंको समझाना बहुत पडता हैं. हमारी तरह. जब कोई इन्सान ट्राफिकमें सिग्नल जंप करता हैं तो हमारा सीना चौडा हो जाता हैं. आखिर डार्विनने सच कहा था इन्सान पहले बंदरही थे. सुबह शाम ट्रेन को लटककर जानेवाले लोग हमे अपनेसे लगने लगे हैं. आपने नोटीस किया होगा बंदर बेवजह हसते हैं पेडोंसे लटककर. बिलकुल उन लोगोंकी तरह जो मोबाईलमें देखकर अकेलेही हसते रहते हैं.
ऐसी बहुतसी बातें हैं. मगर ये मत सोचना के इंसान और बंदर एकजैसे होते हैं यह बताने के लिये मैने लिखा हैं. उससे बंदरों कोई फायदा नहीं होगा. मगर हम बंदरोसे डेवलप होते होते इन्सान बना हैं. लेकीन अब भी लगता हैं कुछ खास डेवलपमेंट नहीं हुई. हम बंदर पेडोंपर झुमते रहते हैं. खाते कम हैं मगर फल और फूल तोडकर फेकते जादा हैं. हिरण बंदरोकी इस आदतसे खुश होते हैं. जिस पेड पर बंदर मस्ती करते हैं उसके नीचे हिरण पेट भरने चले आते हैं. हमारी मस्ती कमसेकम किसी का पेट तो भरती हैं. मगर आप जो अनाज फेकते रहते हो क्या उससे किसीका पेट भरता हैं?
हम बंदर शेरसे डरते हैं. वैसे हमें पकडना उनके लिये आसान नहीं हैं. शेर पेडपर चढ नहीं सकते. इसलिये वो पेडके नीचे रुकते हैं. कभी हमारा साया दिखता हैं जमीनपर. शेर हमारे सायेपर हमला करते हैं. और हम पेडपर बैठे बैठे डर जाते हैं. गिर जाते हैं. आसनीसे शेरका शिकार बन जाते हैं. आपके साथभी कुछ ऐसाही होता हैं. जात और धर्मके साये ऐसेही होते हैं. उनके नाम पर आपभी आसनीसे शिकार बन जाते हैं.
मदारी हमें लेकर घुमते थे. खेल दिखाते थे. नाचते हम थे और कमाते मदारी थे. हम जितना जादा चीखते चील्लाते थे उतनी जादा मदारीकी जेब भरती थी. क्या यही सब चुनावमें नही होता आपके? मदारी कमसे कम हमें सर पर बिठाकर घुमता था. आपने कभी सोचा हैं आपके मदारीके पास आपकी जगह कहां हैं? मदारी सिर्फ राजनीतीमें नही होते. हर जगह होते हैं. आजकल बंदरोके खेलपर सरकारने रोक लगा दी हैं. इसलिये हम तो बचगये भाईसाहब. बस चिंता आपकी लगी रहती हैं. इंसानोके साथ होनेवाले खिलवाड पर रोक लानेके लिये कोई कानून नहीं हैं. जानवरके बच्चोको टीव्ही या फिल्मोंमे दिखानेके लिये सख्त कानून बने हैं. इन्सानके बच्चोके लिये ऐसा कोई कानून नहीं. बुरा लगता हैं.
एक बात और. आप लोग कहते हो बंदर ह्मारे एरिया में घूस आते हैं. ऐसा नहीं हैं भाई. आपने जंगल तोडकर घर बनाये हैं. आपण घूस आये हो हमारे एरियामें. अब आ ही गये हो तो हमारी कुछ अच्छी बातेंभी सिखलो. जबभी जंगलमें हमारे आसपास शेर, भालू या ऐसा कोई जानवर शिकारके लिये आता हैं तो हम पेडों पर बैठकर चिखने लगते हैं. चील्लाने लगते हैं. ताकी बाकी जानवर अपनी जान बचाकर भाग सकें. आपकोभी ऐसा करना होगा. आप डेवलपमेंट वाले लोग हो. चीखनेकी जरुरत नहीं. मगर बोलना होगा. अपने लोगोंको धोखेका इशारा देना होगा. अगर आजकल बंदर मदारीके इशारोंपर नहीं नाचते तो इन्सान क्यों? आपको बोलना होगा. दहशतके खिलाफ, अंधश्रद्धा के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ. यही तो एक फर्क बचा हैं आपमे और हममे. आप बोल सकते हैं. ऐसा माना जातं हैं के बहुत सालोंतक पुंछ का इस्तमाल नहीं किया इसलिये इंसान कि पुंछ गायब हो गयी. शायद कल जबानका भी ऐसा कुछ ना हो जाये. मासूम जानवरो क लिये, पेड और पौधोंके लिये, गरीबोंके लिये. किसानों के लिये आवाज उठानी चाहिये. बोलना चाहिये. और जो बोलते हैं उनका साथ देना चाहिये.
- अरविंद जगताप.
Arvindji Karach Khup Sundar. Keep It Up........
ReplyDeleteखुप छान....!
ReplyDeleteखरच अप्रतिम लिहता तुम्ही.
Khup chan.....
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